दिसंबर और जनवरी का रिश्ता

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कितना अजीब है ना,

दिसंबर और जनवरी का रिश्ता?

जैसे पुरानी यादों और नए वादों का किस्सा

दोनों काफ़ी नाज़ुक है

दोनो में गहराई है,

दोनों वक़्त के राही है,

दोनों ने ठोकर खायी है

यूँ तो दोनों का है

वही चेहरावही रंग,

उतनी ही तारीखें और

उतनी ही ठंड

पर पहचान अलग है दोनों की

अलग है अंदाज़ और

अलग हैं ढंग

एक अन्त है,

एक शुरुआत

जैसे रात से सुबह,

और सुबह से रात

एक में याद है

दूसरे में आस,

एक को है तजुर्बा,

दूसरे को विश्वास

दोनों जुड़े हुए है ऐसे

धागे के दो छोर के जैसे,

पर देखो दूर रहकर भी

साथ निभाते है कैसे

जो दिसंबर छोड़ के जाता है

उसे जनवरी अपनाता है,

और जो जनवरी के वादे है

उन्हें दिसम्बर निभाता है

कैसे जनवरी से

दिसम्बर के सफर में

११ महीने लग जाते है

लेकिन दिसम्बर से जनवरी बस

पल मे पहुंच जाते है!!

जब ये दूर जाते है

तो हाल बदल देते है,

और जब पास आते है

तो साल बदल देते है

देखने में ये साल के महज़

दो महीने ही तो लगते है,

लेकिन…

सब कुछ बिखेरने और समेटने का

वो कायदा भी रखते है…

दोनों ने मिलकर ही तो

बाकी महीनों को बांध रखा है,

अपनी जुदाई को

दुनिया के लिए

एक त्यौहार बना रखा है..!

‍‍*****

વર્ષના અંતિમ માસ ડિસેમ્બર અને નવા વર્ષના પ્રથમ માસ જાન્યુઆરીની સંધિની આ સુંદર અને અર્થપૂર્ણ કવિતા. ભાઈ શ્રી કીર્તિચંદ્ર શાહે મને મોકલી. ગમી ગઈ. મુશ્કેલી એટલી જ કે એમને કવિના નામ વગર કોઈએ ફોરવર્ડ કરેલી. પણ કવિતા ખરેખર સરસ છે અને આજના દિવસે વાંચવી ખૂબ ગમે એવી છે એટલે માફ કરજો, કવિના નામ વગર અહીં શેર કરું છું. કોઈને નામ મળે તો કોમેન્ટમાં જરૂર લખશો એવી વિનંતી.

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