मिर्ज़ा ग़ालिब ~ हज़ारों ख्वाहिशें

हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी के हर ख्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले

डरे क्यूँ मेरा क़ातिल क्या रहेगा उसकी गरदन पर
वो ख़ूँ जो चश्म ए तर से उम्र भर यूँ दमबदम निकले

निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन
बहुत बेआबरू होकर तेरे कूंचे से हम निकले

भरम खुल जाए ज़ालिम तेरे क़ामत की दराज़ी का
अगर उस तुररा ए पुरपेचोख़म का पेचोख़म निकले

मगर लिखवाए कोई उसको ख़त तो हम से लिखवाए
हुई सुबह और घर से कान पर रखकर क़लम निकले

हुई इस दौर में मनसूब मुझसे बादा आशामी
फिर आया वो ज़माना जो जहाँ में जामेजम निकले

हुई जिनसे तवक़्क़ो ख़स्तगी की दाद पाने की
वो हमसे भी ज़्यादा ख़स्ता ए तेग ए सितम निकले

मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख के जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले

कहाँ मैख़ाने का दरवाज़ा ग़ालिब और कहाँ वाइज़

पर इतना जानते हैं कल वो जाता था के हम निकले

मिर्ज़ा ग़ालिब

આજે રવિવાર. કાવ્યવિશ્વમાં નવી પોસ્ટ મૂકવામાં રજા પણ આ દિવસ મીરજા ગાલિબનો હોય તો એ અતિ વિશેષ બની જાય. દૂરદર્શન પર આવેલી ધારાવાહિક શ્રેણી मिर्ज़ा ग़ालिबમાં જગજિતસિંહના અવાજમાં આ અદભૂત ગઝલ સાંભળો…

27.12.20

કાવ્ય : ગાલિબ  સ્વર : જગજીતસિંહ

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હરીશ ખત્રી

13-04-2021

વાહ! આજે રવિવારની સવાર બાગ બાગ!
ગાલીબની ગજબની ગઝલ અને પ્રિય જગજીતજીનો જાદૂઈ. સ્વર!

રીંકું રાઠોડ

13-04-2021

વાહ. આજના દિવસે ગાલિબ વિશે રસપ્રદ માહિતી પ્રાપ્ત કરાવી.. હાર્દિક આભાર.

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