વિશેષ : मीर तकी मीर ~ કેટલાક શેર

वह आए बज्म में इतना तो मीर ने देखा
फिर ईसके बाद चिरागों में रोशनी ना रही

पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है
जाने ना जाने गुल ही न जाने बाग तो सारा जाने है

दिल वो नगर नहीं कि फिर आबाद हो सके
पछताओगे सुनो हो ये बस्ती उजाड़ कर

रात मजलिस में तीरी हम भी खड़े थे
चुपके जैसे तस्वीर लगा दे कोई दीवार के साथ

जिससे खोई थी नींद मीर ने कल
इब्तिदा फिर वही कहानी की

‍~ मीर तकी मीर

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